कांग्रेस का मिशन यूपी

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। हाल में राज्य के प्रभारी बनाए गए दोनों महासचिवों प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ लखनऊ में एक रोड शो करके इसकी शुरुआत की।
हाल तक लग रहा था कि कांग्रेस अपनी रणनीति सत्ताविरोधी महागठबंधन के हिसाब से तय करेगी। लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी द्वारा कांग्रेस को एक तरफ रखकर सीटों का तालमेल कर लेने की घोषणा के बाद उसकी तरफ से यूपी में अपनी खोई हुई जमीन फिर से तलाश करने और सारी सीटें अकेले दम पर लडऩे की बात कही गई।यह घटनाक्रम उसका दूरगामी नजरिया जताने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन कांग्रेस के प्रति नरम होकर सोचें तो यह नतीजा निकाला जा सकता है कि वह 2019 से आगे की राजनीति को ध्यान में रखकर चल रही है। प्रियंका गांधी को महासचिव बनाने से यूपी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह निश्चित रूप से बढ़ा है, हालांकि उनको और ज्योतिरादित्य सिंधिया को जमीन पर उतरने के बाद ही पता चलेगा कि उनकी चुनौतियां कितनी बड़ी हैं। सच कहें तो यूपी में कांग्रेस को लगभग शून्य से शुरू से करना है, क्योंकि नीचे पंचायत और वार्ड स्तर पर उसका सांगठनिक ढांचा उजड़ गया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में उसने राज्य के सत्तारूढ़ दल से गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था, फिर भी कुल 403 में से सिर्फ सात सीटें उसके हाथ आईं। इसका अर्थ और क्या लगाया जाए? 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस ने यूपी में 51 फीसदी वोटों के साथ कुल 85 में से 83 लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन उसके बाद से वह लगातार लुढ़कती ही गई है। इसका अकेला अपवाद 2009 का आम चुनाव था, जिसमें 21 सीटें हासिल करके वह राज्य में दूसरे नंबर पर रही। शीर्ष नेतृत्व का तात्कालिक जरूरतों के तहत राज्य के दोनों क्षेत्रीय दलों के आगे घुटने टेक देना भी कांग्रेस को बुढ़ापे की ओर ले गया, लेकिन उसकी अधोगति का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि यूपी में कोई मजबूत जमीनी नेतृत्व खड़ा करना पार्टी आलाकमान के अजेंडे पर ही नहीं रहा। नतीजा यह कि पार्टी में राजनीतिक संस्कृति समाप्त हो गई और चाटुकारिता-गुटबाजी का बोलबाला हो गया। लेकिन अब कांग्रेस लीडरशिप को शायद यह लगने लगा है कि यूपी जैसे बड़े राज्य में हथियार डालकर पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता नहीं बचा पाएगी। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि कांग्रेस अब बैकफुट पर नहीं खेलने वाली। प्रियंका और ज्योतिरादित्य के बारे में उनका कहना है कि लोकसभा इनका लक्ष्य जरूर है, लेकिन इन्हें लखनऊ में भी कांग्रेस की सरकार बनवानी है।

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